वक्फ बोर्ड के हलफनामे के बाद वक्फ संशोधन विधेयक का नतीजा सामने आया
दिल्ली हाई कोर्ट ने शाही ईदगाह में मूर्ति स्थापित न करने की याचिका खारिज कर दी कोर्ट ने अल्पसंख्यक आयोग के फैसले को भी अवैध करार दिया, वक्फ बोर्ड के हलफनामे के कारण हमें हार का सामना करना पड़ा: अधिवक्ता इमरान अहमद

नई दिल्ली (नेशनल मीडिया) ; दिल्ली हाई कोर्ट ने प्रबंधन समिति की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि पुरानी दिल्ली की शाही ईदगाह में रानी झांसी की मूर्ति नहीं लगाई जानी चाहिए, लेकिन डीडीए ने तीन जगहों की पहचान की है कि यह मूर्ति वहां स्थापित की जानी चाहिए। गौरतलब है कि इस पूरी जमीन को लेकर दिल्ली वक्फ बोर्ड ने पहले कहा था कि यह सारी जमीन वक्फ बोर्ड की है, लेकिन कुछ दिन पहले वक्फ बोर्ड की ओर से एक हलफनामा दायर किया गया था जिसमें कहा गया था कि यह विवादित जमीन है. हमारा नहीं है और यही वजह है कि हाई कोर्ट ने उक्त याचिका खारिज कर दी. हाईकोर्ट ने अल्पसंख्यक आयोग में हुई सुनवाई को अवैध करार दिया है. इस पूरे मामले में आश्चर्य की बात यह है कि जिस जमीन पर दिल्ली वक्फ बोर्ड सीना ठोक कर कहता था कि यह जमीन हमारी है और हम इसकी रक्षा करेंगे, तो फिर क्या वजह है कि वक्फ बोर्ड आज उसे हमारी जमीन कहने से मना कर रहा है . या यूं कहें कि अब वक्फ संशोधन बिल विचार-विमर्श के दौर से गुजर रहा है और इसके नतीजे आने शुरू हो गए हैं।शाही ईदगाह के मामले में हाईकोर्ट ने 20 सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था और देर रात हाईकोर्ट ने प्रबंधन समिति की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह जमीन वक्फ बोर्ड की नहीं है डीडीए को कोर्ट भी
उन्होंने कहा कि यह कहने की जरूरत नहीं है कि अल्पसंख्यक आयोग के पास स्थिति को यथावत रखने का कोई अधिकार नहीं है।आयोजन समिति की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विराज आर अत्तार, अधिवक्ता इमरान अहमद आदि उपस्थित हुए.अधिवक्ता इमरान अहमद ने विस्तार से बताया कि अल्पसंख्यकडी डीए आयोग में लगाएगा मूर्ति!अपने लिए तीन जगहें चिन्हित कीं और आयोग ने भी इसे मान्यता दी थी, लेकिन ईदगाह के कमीशन मेंस भी दस्तावेज और प्रस्तुतियाँ भी प्रस्तुत की गईं। हालांकिइस बीच आयोग ने डी.डी.ए दो हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया जो डी.डीए ने भी जमा किया था. साथ ही आयोग का यह फैसला जसे डीडीए और कॉरपोरेशन ने चुनौती भी नहीं दी थी।
एक मिसाल कायम की गई लेकिन आज हाई कोर्ट ने इसे स्वीकार कर लिया।उच्च न्यायालय के हमारे निर्णय के अनुसार नहीं किया गयायह स्वीकार्य नहीं है और हम आज इसके खिलाफ हैं।चीफ जस्टिस की दो सदस्यीय बेंच में याचिका दाखिल की गई।
जिस पर कल सुनवाई होगी। उन्होंने कहा कि ये पूरा मामला वक्फ बोर्ड ने बिगाड़ा है।अश्विनी कुमार, जो निगम में आयुक्त भी हैं और कमिश्नर बनने के बाद उन्होंने बोर्ड छोड़ दिया लेकिन इस मामले के लिए उन्हें वापस बुला लिया गया और उन्होंने बोर्ड के अधिकारियों पर दबाव डाला कि वे शपथ पत्र दायर करें कि यह जमीन वक्फ बोर्ड की नहीं है। उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि इस मामले में निगम भी एक पक्ष है और वह निगम के खिलाफ कोई आदेश नहीं चाहते थे. इसके अलावा उन्होंने वकील फिरोज इकबाल को इस केस से हटा दिया और तशार शिनो को वकील नियुक्त कर दिया और ताशार शिनो ही डीडीए और निगम की ओर से पैरवी करते रहे हैं. ऐसे में वे भी डीडीए और निगम के खिलाफ कैसे जा सकते थे। उन्होंने कहा कि यह वही अश्विनी कुमार हैं जो धार्मिक समिति के अध्यक्ष थे और जिनके आदेश पर अनगिनत दरगाहों और मस्जिदों को शहीद किया गया है।
जब वक्फ बोर्ड ने कहा था कि* ईदगाह हमारी है तो फिर किसके कहने पर हलफनामा दाखिल किया गया? बता दें कि शुक्रवार 30 अगस्त को दोपहर दो बजे के बाद कसाबपुरा के रहने वाले जाकिर कुरेशी नाम के शख्स ने दिल्ली वक्फ बोर्ड के सीईओ और यहां रजा से बोर्ड के दफ्तर में मुलाकात की और उन्हें ईदगाह के बारे में भी जानकारी दी. जिस पर सीईओ ने कहा कि हमारे पास ईदगाह के सभी दस्तावेज हैं और कौन कहता है कि यह जमीन हमारी नहीं है, बल्कि यह सारी जमीन दिल्ली वक्फ बोर्ड की है और इसके अलावा सभी वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा करना मेरा कर्तव्य है और मैं ऐसा नहीं करूंगा किसी भी कीमत पर वक्फ की जमीन जाने दो। उसी दिन प्रबंधन समिति समेत कई लोग सीईओ से मिले और उन्हें दस्तावेज दिखाते हुए कहा कि यह सारी जमीन वक्फ बोर्ड की है। जिस पर सीईओ ने प्रबंधन समिति से कहा कि हम समिति का कार्यकाल बढ़ा रहे हैं। और आप इस मामले में कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं। हम आपके साथ खड़े हैं। इतना सब होने के बावजूद आखिर क्या वजह है कि वक्फ बोर्ड ने कोर्ट में लिखकर कहा है कि ये जमीन हमारी नहीं है। जाहिर है यह पूरा मामला वक्फ संशोधन विधेयक, से जुड़ा और इसका पहला परिणाम आज हमारे सामने है।