
वक्फ टुडे : सरकार द्वारा वक्फ संपत्तियों के डिजिटलीकरण के प्रयास केवल दिखावे के लिए किए गए हैं, इसके पीछे कोई वास्तविक इरादा नहीं है।
देश भर में कुल 994 वक्फ संपत्तियों को ‘अलग-थलग संपत्ति’ के रूप में रिपोर्ट किया गया है। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरण रिजिजू ने 9 दिसंबर को राज्यसभा में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के सांसद जॉन ब्रिटास के एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह जानकारी प्रदान की।
इस जानकारी के जारी होने के तुरंत बाद, लगभग सभी हिंदी मीडिया चैनलों और वेबसाइटों ने जनता को गलत जानकारी देते हुए सुर्खियाँ चलाईं कि “देश भर में वक्फ द्वारा 994 संपत्तियों पर अवैध रूप से कब्जा किया गया है”। गौरतलब है कि वक्फ बोर्ड पर “भूमि जिहाद” में शामिल होने का भी आरोप लगाया गया है।
“अलग-थलग वक्फ संपत्ति” से तात्पर्य वक्फ भूमि या संपत्तियों से है जिसे गैरकानूनी तरीकों से हस्तांतरित या अतिक्रमण किया गया है। फिर भी हमारे तथाकथित सूचित मुख्यधारा के मीडिया ने कहानी को उल्टा कर दिया, भूमि के असली मालिकों को – जिनकी संपत्तियों पर दूसरों ने अवैध रूप से कब्जा कर लिया था – खुद कब्जाधारियों के रूप में चित्रित किया।
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27 नवंबर को लोकसभा में भाजपा सांसद बसवराज बोम्मई के एक प्रश्न के लिखित उत्तर में रिजिजू ने कहा था कि देश भर में 58,929 वक्फ संपत्तियां अतिक्रमण का सामना कर रही हैं।
रिजिजू ने ये आंकड़े वक्फ एसेट्स मैनेजमेंट सिस्टम ऑफ इंडिया (WAMSI) पोर्टल के आंकड़ों के आधार पर दिए, जो अपने आप में कई कारणों से गंभीर सवाल खड़े करता है।
WAMSI एक ऑनलाइन वर्कफ़्लो-आधारित वक्फ प्रॉपर्टीज़ प्रबंधन प्रणाली है जिसे वक्फ संपत्तियों की संपूर्ण जीवन-चक्र में अद्यतन स्थिति का प्रबंधन और रखरखाव करने के लिए विकसित किया गया है
WAMSI पोर्टल पर उपलब्ध डेटा से पता चलता है कि देश भर में 356,072 वक्फ सम्पदाओं में फैली 872,379 अचल और 16,713 चल वक्फ संपत्तियां वक्फ अधिनियम के तहत पंजीकृत हैं। हालाँकि, इन 872,379 संपत्तियों में से 435,793 के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। इससे पता चलता है कि आंकड़ों की वृद्धि गलत सर्वे से आए हैं या अतिक्रमण की संख्या बहुत अधिक हो सकती है।
WAMSI के आंकड़ों के अनुसार, केवल 95,277 अचल वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन वक्फ बोर्ड द्वारा किया जाता है, जबकि 413,766 वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन अज्ञात है
23 अक्टूबर, 2008 को वक्फ पर एक संयुक्त संसदीय समिति ने संसद को अपनी नौवीं रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें अन्य सिफारिशों के अलावा, 25 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से राज्य वक्फ बोर्ड के रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण करने की बात कही गई थी। केंद्र सरकार ने वक्फ बोर्ड के सभी दस्तावेजों को कम्प्यूटरीकृत करने की इस सिफारिश को मंजूरी दे दी थी।
मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान शुरू हुई इस कम्प्यूटरीकरण पहले की गति शुरू में बहुत धीमी थी। अदालती हस्तक्षेप के बाद इस प्रक्रिया में तेजी आई।
हालाँकि, मोदी सरकार के तहत, यह प्रक्रिया अब अपने अंतिम चरण में होने का दावा किया जा रहा है। पिछले महीने राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में, यह खुलासा किया गया था कि 3,30,008 वक्फ सम्पदाओं के 3,56,060 दस्तावेजों में से एक “काफी हिस्सा” डिजिटल हो चुका है।
यह डिजिटलीकरण कौमी तरक़्क़ियाती योजना का हिस्सा है, जिसके 2025-26 तक जारी रहने की उम्मीद है। यह योजना वक़्फ़ संपत्तियों के रिकॉर्ड को डिजिटल बनाने और राज्य और केंद्र शासित वक़्फ़ बोर्डों को अतिरिक्त धनराशि प्रदान करने के लिए शुरू की गई थी, ताकि वे जियो-टैगिंग, जीपीएस सर्वेक्षण और वक़्फ़ भूमि और संपत्तियों की मैपिंग का उपयोग करके अपनी प्रभावशीलता बढ़ा सकें, ताकि छवियों, स्वामित्व मानचित्रों और वक़्फ़ संपत्तियों के आस-पास की इमारतों या भूमि की स्थिति सहित विस्तृत जानकारी एकत्र की जा सके।
हालाँकि, सरकार इस योजना के बारे में कभी भी पूरी तरह पारदर्शी नहीं रही है
वक्फ योजना के बारे में आरटीआई से क्या पता चला
2021-22 में इन योजनाओं का बजट घटाकर 16 करोड़ रुपए कर दिया गया, जिसमें से केवल 12 करोड़ रुपए जारी किए गए और 7.72 करोड़ रुपए खर्च किए गए।
वर्ष 2022-23 में इन योजनाओं पर मात्र 5.12 करोड़ रुपए खर्च किए गए। वर्ष 2023-24 के लिए 17 करोड़ रुपए का बजट आवंटित किया गया, लेकिन केवल 8 करोड़ रुपए ही जारी किए गए।
वक्फ डिजिटलीकरण कार्य की वास्तविकता क्या है?
कई वक्फ कार्यकर्ताओं ने शिकायत की है कि सरकार ने डिजिटलीकरण के प्रयास सिर्फ़ दिखावे के लिए किए हैं, इसके पीछे कोई वास्तविक इरादा नहीं है। कई लोगों का मानना है कि लंबे समय में इस पहल से होने वाले लाभ बहुत कम होंगे, जबकि नुकसान बहुत ज़्यादा हो सकते हैं।
केंद्रीय वक्फ परिषद के साथ 2021 के आरटीआई आवेदन के जवाब में, जिसमें पूछा गया था कि कितनी शिकायतें आईं
पिछले पांच वर्षों में वक्फ संपत्तियों के डिजिटलीकरण के संबंध में कोई शिकायत प्राप्त नहीं हुई है।
हालांकि, महाराष्ट्र के पुणे में रहने वाले पूर्व मुख्य आयकर आयुक्त (आईआरएस) अकरमुल जब्बार खान से बात करने पर यह स्पष्ट हो गया कि केंद्रीय वक्फ परिषद ने आरटीआई के तहत गलत जानकारी दी है।
उन्होंने बताया कि उन्होंने वक्फ संपत्तियों के डिजिटलीकरण के संबंध में विभिन्न वक्फ बोर्डों और अधिकारियों, जिनमें सेंट्रल वक्फ काउंसिल भी शामिल है, को कई शिकायतें भेजी थीं। उन्हें कभी कोई जवाब नहीं मिला और उनकी शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई।
सरकार प्रक्रिया को पूर्ण दिखाने पर ध्यान केंद्रित कर रही है‘।
सरकार अंतर्निहित मुद्दों को संबोधित करने के बजाय प्रक्रिया को पूरा दिखाने पर ज़्यादा ध्यान केंद्रित कर रही है। हालाँकि कुछ पहलुओं में काम कुशलता से किया गया है, लेकिन उन्होंने कहा कि इसमें महत्वपूर्ण खामियाँ हैं।
डिजिटलीकरण के ज़्यादातर प्रयासों में वक्फ संपत्तियों की जानकारी अधूरी रह जाती है। कई संपत्तियों को “हटाने के लिए” चिह्नित किया गया है। उदाहरण के लिए, दिल्ली के दरियागंज में प्रसिद्ध “बच्चों का घर” को वक्फ संपत्ति के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, लेकिन WAMSI पोर्टल पर इसका सटीक स्थान गायब है। ऐसे मामलों में लिए कौन जवाबदेह होगा?
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WAMSI पोर्टल पर अपलोड किए गए मुंबई शहर और उसके उपनगरों के डिजिटल रिकॉर्ड में भी खामियां हैं। खामियों के बारे में बार-बार वक्फ बोर्ड को बताया, लेकिन अधिकारी सुनने या कोई कार्रवाई करने को तैयार नहीं हैं।
2019-20 में, केंद्रीय वक्फ परिषद ने योजना के तहत केंद्रीकृत कंप्यूटिंग सुविधा (सीसीएफ) को 13,04,000 रुपये प्रदान किए , 2020-21 में सीसीएफ का बजट 23,53,410 रुपए था, लेकिन खर्च सिर्फ 5,83,207 रुपए हुआ। इसके अलावा, उस साल 9 लाख रुपए का अलग से फंड आवंटित किया गया था, लेकिन सिर्फ 1,24,778 रुपए का इस्तेमाल हुआ।
आरटीआई में डिजिटलीकरण कार्य के लिए ऑडिट रिपोर्ट प्रस्तुत करने के बारे में भी पूछा। सेंट्रल वक्फ काउंसिल ने जवाब दिया, “अभी तक डिजिटलीकरण कार्य के संबंध में ऑडिट नहीं किया जा रहा है।”
WAMSI पोर्टल पर कई संपत्तियां गायब।
महाराष्ट्र के नवी मुंबई के उरण में रहने वाले मोइद तुंगेकर की समस्या और भी गंभीर है। उनका दावा है कि उनकी 208 एकड़ की वक्फ संपत्ति WAMSI की वेबसाइट पर कहीं भी सूचीबद्ध नहीं है।
वेबसाइट के अनुसार, दिल्ली में कुल 1,046 वक्फ संपत्तियां हैं, जबकि दिल्ली वक्फ बोर्ड ने मुझे 1,964 वक्फ संपत्तियों की सूची दी है। इसके अलावा, WAMSI डेटा की जांच करने पर, कोई भी आसानी से यह निष्कर्ष निकाल सकता है कि दिल्ली में सिर्फ़ एक कब्रिस्तान है, जो दिल्ली वक्फ बोर्ड के 562 के डेटा के विपरीत है।
कब्रिस्तान, हालांकि बाद में यह संख्या संशोधित कर 488 कर दी गई। मौके पर 86 कब्रिस्तानों पर ही दफनाया जाता है शेष पर डीडीए, एम सी डी और केंद्र सरकार का कब्जा है।
इसके अलावा, वेबसाइट पर सूचीबद्ध अधिकांश वक्फ संपत्तियों में उनके स्थान के बारे में विवरण नहीं है। कई संपत्तियों का मूल्य शून्य रुपये है, और कई प्रविष्टियों में छवियां और जीपीएस डेटा गायब हैं। इससे भी अधिक चिंताजनक बात यह है कि कई वक्फ संपत्तियां प्रशासन विवरण, मुतवल्ली और वर्तमान स्थिति जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों को खाली छोड़ देती हैं। सैकड़ों हेक्टेयर या एकड़ में फैली बड़ी संपत्तियां सर्वेक्षण से बाहर रह जाती हैं। इन विसंगतियों को देखते हुए, यह जानकारी कैसे विश्वसनीय है?
वक्क वेलफेयर फोरम:
यह वक्फ संपत्तियों की हिफाजत, रजिस्ट्रेशन एवं पलिसी पे काम करती है। अध्यक्ष – जावेद अहमद ने कहा कि उत्तर भारत में वक्फ संपत्तियों की विसंगतियां और आंकड़ों का लेखा-जोखा गंभीर स्थिति पैदा करता है। बिहार प्रदेश में वक्फ एक्ट 1995 आने के पहले या बाद में वक्फ संपत्तियों का सर्वे का काम पूरा नहीं किया जा सका। उत्तर प्रदेश , उत्तराखंड के अलावा पूरे देश में 1995 के बाद वकफ संपत्तियों का सर्वे का कार्य नहीं किया गया जबकि वामसी पोर्टल पर जियो टैगिंग सर्वे के आंकड़े वक्फ अलल-अलल खैर के आधे अधूरे आंकड़े दिखा देते हैं लेकिन वक्फ अलल-अलल औलाद के संपत्तियों की संख्या इसमें शामिल नहीं है। इस तरह केंद्र सरकार अधूरे आंकड़ों एवं वकफ बोर्ड के भ्रष्टाचार को आधार मानकर वक्फ संपत्तियों के साथ असंवैधानिक एवं मुस्लिम अफेयर्स में हस्तक्षेप किया जाना अनुचित और दिशाहीन बताया।
संसदीय स्थायी समिति ने लोकसभा में 12 फरवरी 2021 को पेश अपनी रिपोर्ट में वक्फ संपत्तियों के विकास और डिजिटलीकरण को लेकर चिंता जताई। समिति ने इस पर असंतोष व्यक्त करते हुए कहा कि देशभर में 50% वक्फ संपत्तियों की जीआईएस मैपिंग मार्च 2020 तक पूरी होनी थी। अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय इस लक्ष्य को पूरा करने में विफल रहा। मंत्रालय ने इस देरी के लिए कोविड-19 लॉकडाउन को जिम्मेदार ठहराया। समिति ने इस स्पष्टीकरण को अस्वीकार्य पाया और बताया कि लॉकडाउन मार्च के अंत में लगाया गया था, जिस समय तक काम पूरा हो जाना चाहिए था।
इन सबके बावजूद सरकार देश में वक्फ व्यवस्था को अधूरी जानकारी के आधार पर संचालित कर रही है, जबकि जनता के बीच प्रगति का भ्रम बनाए हुए है। पारदर्शिता की कमी, इसके अलावा वक्फ व्यवस्था और पूरे देश के लिए गंभीर खतरा पैदा करती है।
गौरतलब है कि जॉइंट पार्लियामेंट समति 4 राज्यों मे दौरा 18 जनवरी 2025 से 21 जनवरी 2025 तक प्रस्तावित है । उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और वेस्ट बंगाल में समिति स्टेकहोल्डर और संबंधित अधिकारियों से वक्फ अमेंडमेंट एक्ट 2024 पर सुझाव लेगी।