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दो मसलक की लड़ाई में मस्जिद और उनसे मुनस्लिक 4.0 एकड़ जमीन खतौनी से उप जिलाधिकारी के आदेश से निरस्त कर दिया गया



वक्फ  961 रकबा 4.0,  एकड़ एग्रीकल्चर जमीन  संपत्ति को एसडीएम कोर्ट ने निरस्त किया।

वाद सं 4222 /2021 तहसील फतेहपुर बाराबंकी

वक्फ टूडे: लखनऊ
वक्फ नंबर 961 , गौरा सैलक , तहसील फतेहपुर जिला बाराबंकी के अंतर्गत 1978 में वक्फ व राजस्व में मस्जिद के साथ चार एकड़ जमीन अलग-अलग गाटा सं 137, 139 और 401 में इंद्राज है। मस्जिद वक्फ बोर्ड में 1983 में दर्ज कराई गई।
पिछले 45 सालों से मस्जिद का निजाम और एग्रीकल्चर लैंड के आमदनी से पूरे किए जाते रहे लेकिन 2023 में दो के मौलाना ने अपने-अपने वर्चस्व को लेकर मामला तहसील फतेहपुर के न्यायालय में पहुंचा। मौलाना नसीम अपने मदरसे के नाम पे चार एकड़ जमीन दर्ज करने के लिए तहसील के न्यायालय में वाद दाखिल किया लेकिन राजस्व रिकॉर्ड और सबूत के मुताबिक तहसीलदार ने मस्जिद वक्फ 961 के हक में फैसला दिया।
मौलाना नसीम दोबारा एसडीएम कोर्ट में अपील दर्ज करते हुए मस्जिद की जमीन के वक्फनामे को चैलेंज किया किया जो 1978 में रजिस्टर्ड वक्फ डीड के जरिए राजस्व रिकॉर्ड में इंद्राज है।


उप जिलाधिकारी कोर्ट ने फसली, राजस्व रिकॉर्ड एवं वकफ के इंद्राज को गैरकानूनी बताते हुए खतौनी से मस्जिद की जमीन को निरस्त करने का आदेश जारी कर दिया।

मस्जिद के मुतवली आकिफ कमाल अयूबी का कहना है कि गांव के प्रधान और मौलाना नसीम कादरी के साठ- गांठ से एसडीएम के आदेश पर रातों-रात वक्फ की जमीन पर कब्जा कर लिया गया।

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की नाकामी , देवबंदी एवं बरेली के मसलक ने औकाफ के अममालाक पर कब्जा जमाने के लिए समाज में होड़ लगी हुई है।
यह सब मामले तब सामने आ रहे हैं जब वक्फ की तरमीम 2024 बिल पार्लियामेंट में जेरे बहस है। जब मुल्क में मिली तंजीम अपने इदारो में वक्फ की अहमियत और उसके सरोकारों से अपने उलमाओं को बेदार करने में नाकाम रही। जिसके नतीजे सामने आने लगे हैं।
सवाल इस बात का है ऐसे मामलों का निपटारा जमाते इ इस्लामी और जमाते उलमा हिंद अपने जिले और हलके के कमेटी के ओहदेदारों से क्यों नहीं करती है। सिर्फ उत्तर प्रदेश में मेंबरशिप से यह तंजीम 3 साल में तकरीबन 2.0 करोड रुपए इकट्ठा करती हैं और जाड़े में कंबल और जरूरत पड़ने पर चना और दलिया मस्जिदों में तकसीम करती है।
हाल ही में 15 फरवरी 2025 को लखनऊ के एक मशहूर होटल में पूर्वांचल के जमाते इस्लामी इस्लामी के जिम्मेदारों की जमावड़ा हुआ जिसमें लोकल मसाले और जकात के वसूली पर कारगुजारी तय की गई और उम्मीद है की टारगेट भी दिया गया होगा। लेकिन जमाते इ इस्लामी एक मुल्क में ऐसी तंजीम है जिसके पास संजीदा और गौर व फिक्र करने वाले अफराद हैं लेकिन इस तंजीम ने वक्फ आमलक पर अपनी कारगुजारी में इस अहम मसौदे में शामिल नहीं करती है।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड अपने भारी भरकम टीम में ज्यादातर वक्फ और जकात लुटेरों की तंजीम बनकर रह गई है। वक्फ अमेंडमेंट बिल 2024 को पार्लियामेंट में पास होने में कुछ दिन रह गए हैं । लेकिन ऑल इंडिया मुस्लिम परसनल ला बोर्ड मीटिंग पर मीटिंग कर रही है लेकिन चंद्रबाबू नायडू और नीतीश से बातचीत कर समर्थन लेने में नाकाम साबित हो गई । साथ ही साथ मुल्क भर में जमाती-उल-महिंद के सदर अरशद मदनी ने तीन बड़े प्रोग्राम किया लेकिन उसके भी नतीजे नाकाम साबित हुए ।
अध्यक्ष वक्फ वेलफेयर फोरम का मानना है कि एसडीएम का फैसला गैरकानूनी बताया और वक्फ के मामले में एसडीएम या राजस्व कोर्ट को इख्तियार हासिल नहीं है। फोरम पूरे प्रकरण में नजर बनाए रखें ।

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