वक्फ टूडे: उत्तर प्रदेश सुनी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और शिया वकफ बोर्ड वक्फ आमलकों की तादाद लगभग 125000 है और 1987 में गजट नोटिफिकेशन के जरिए वकफ बोर्ड में इंद्राज है लेकिन सरकारी सर्वे के मुताबिक 78% वक्फ संपत्तियां रेवेन्यू रिकॉर्ड में इंद्राज नहीं है । लेकिन राहत की बात यह है की राजस्व रिकॉर्ड में इंद्राज ना होना वक्फ संपत्तियों की मिल्कियत खत्म नहीं होती है । लेकिन बिहार में चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। वक्फ संपत्तियां हैं जो वक्फ बोर्ड में पंजीकृत हैं। इस प्रकार है सुन्नी वक्फ बोर्ड के पास 2700 और शिया वक्फ बोर्ड के पास 300 संपत्तियां रजिस्टर्ड हैं और लगभग 8500 कब्रिस्तान राजस्व रिकॉर्ड में इंद्राज है।
विश्लेषण किया जाए तो ऐसी अन्य संपत्तियां हैं जो वक़िफ़ द्वारा एक पंजीकृत दस्तावेज़ के माध्यम से समर्पित की गई हैं और इस्तेमाल में हैं जैसे मस्जिद, कब्रिस्तान, ईदगाह आदि। उनकी संख्या का अनुमान नहीं है क्योंकि हमारे पास ऐसा कोई डेटा नहीं है। और ऐसी आमलक है जिसे वक़िफ़ ने मौखिक रूप से समर्पित (हिबा) किया है। बिना कोई पंजीकृत दस्तावेज़ बनाए जिसे सरकार द्वारा मान्यता दी जा सकती है या अदालत प्रणाली में प्रस्तुत किया जा सकता है। इन संपत्तियों पर मस्जिद, कब्रिस्तान, ईदगाह या अन्य धार्मिक संरचनाएं हैं और इनका उपयोग शांतिपूर्ण तरीके से किया जा रहा है। इनकी संख्या सबसे अधिक है और उपयोग के आधार पर उपयोगकर्ता इन्हें वक्फ बाई यूजर कहते हैं। सरकार की नजर ऐसी संपत्तियों पर है। जिसे वक्फ यूजर कहा जाता है।
संक्षेप में विश्लेषण किया जाए तो देश के कई राज्य ऐसे हैं जहां पर वक्फ सर्वे नहीं हुआ है इनकी तादाद दर्जनों में है और इससे संबंधित मामला सुप्रीम कोर्ट में 2019 से पेंडिंग है कि राज्यों से वकफ सर्वे 1995 एट के मुताबिक जल्द पूरा कराया जाए। जिसमें बिहार भी एक राज्य है जहां पर आजादी के बाद वक्फ संपत्तियों का सर्वे नहीं हुआ है। मिल्लि तंजीमोन की जिम्मेदारियां अब तय होनी चाहिए कि इस काम किस तरह से अंजाम दें। बिहार राज्य में राजस्व सर्वे 2023 से चल रहा है जिसमें वक्फ संपत्तियों का अभिलेख में म्यूटेशन दर्ज कराना एक बहुत बड़ा मुश्किल काम है। हमारे पास इन संपत्तियों का कोई डेटा नहीं है।
हमें इस बात की सराहना करनी चाहिए कि धार्मिक और राष्ट्रीय पार्टियों, बल्कि पूरे देश ने चिंता दिखाई है। मिली तंजीम और स्टेकहोल्डर्स ने पटना में एक बड़ी प्रतिरोध बैठक आयोजित की गई। प्रत्येक जिले में जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपा गया । इन सबके बावजूद जैसा कि उम्मीद थी। जेपीसी ने सरकार की मंशा के अनुरूप एक रिपोर्ट तैयार की है। जिसे जल्द ही संसद में पेश किया जाएगा और बिहार के मुख्यमंत्री माननीय नीतीश कुमार, श्री जीतन राम मांझी, श्री चिराग पासबान और श्री चंद्रबाबू नायडू के समर्थन से यह बिल एक काला कानून बन जाएगा और पूरे देश में मुसलमानों पर एक अंतहीन चक्र शुरू हो जाएगा।