आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है।
हम यहां बैठे हैं और 50 मिलियन मतदाताओं के नाम रद्द कर दिए गए हैं।बिहार में मतदाताओं के नाम बाहर करने पर सुप्रीम कोर्ट ने दिए कड़े संकेत, कपिल सिब्बल, प्रशांत भूषण सिंघवी और योगेंद्र यादव के बीच सुप्रीम कोर्ट में हुई तीखी बहस, चुनाव आयोग ने जीवित लोगों को मृत घोषित करने की गलती मानी

मुंबई – 12 अगस्त: बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) पर आज सुप्रीम कोर्ट में एक बार फिर लंबी और गरमागरम बहस हुई। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉय माल्या बागची की पीठ ने सभी पक्षों की दलीलें एक-एक करके सुनीं और कई महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ कीं। इस अवसर पर जाने-माने वकील कपिल सिब्बल, प्रशांत भूषण, अभिषेक मनु सिंघवी और वृंदा गरदूर ने एसआईआर के खिलाफ अपना पक्ष रखा, जबकि वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी चुनाव आयोग की ओर से पेश हुए।तर्क दिए गए। सामाजिक कार्यकर्ता योगिंदर यादव ने भी व्यक्तिगत रूप से अपनी बात रखी। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि आधार कार्ड किसी नागरिक की नागरिकता का कोई निर्णायक प्रमाण नहीं है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने टिप्पणी की कि नागरिकता पर कानून बनाना संसद का मामला है।अधिकार क्षेत्र मौजूद है, और जो लोग 2003 तक मतदाता सूची में शामिल हैं, उन्हें किसी अतिरिक्त दस्तावेज़ की आवश्यकता नहीं है। चुनाव आयोग के अनुसार, 2003 के मतदाताओं के बच्चों को भी दस्तावेज़ जमा करने की आवश्यकता नहीं है। वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनुसंघवी ने एसआई आरसीओ को पूरी तरह से धोखाधड़ी बताया। उन्होंने कहा कि अदालत के निर्देश के बावजूद, आधार और ईपीआईसी को शामिल करने पर विचार नहीं किया गया। उनके अनुसार, सूची में शामिल नागरिकों पर नकारात्मक प्रभाव डाला जा रहा है और 5 करोड़ लोगों की नागरिकता पर संदेह व्यक्त किया जा रहा है, जो अस्वीकार्य है।



