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वक्फ अलल-औलाद को शत्रु संपत्ति घोषित कर जिला प्रशासन द्वारा नीलामी 1957 मे कर दिया गया

निलामी नियम विरुद्ध आराजी नंबर 1 ,2, 3 व 4 जिला बिजनौर वकफ संपत्ति को गौतम रीशी ने 1957 में हबीब को बेचा




लखनऊ : (वकफ टूडे)

वक्फ ट्रिब्यूनल उत्तर प्रदेश, मुकदमा नंबर 123 /2024 रकबा 14 बीघा, 14 बिसवा आराजी नंबर 1,2,3व 4 रजिस्टर्ड डीड 16 जून 1944, वाकिफ मिर्जा मोहम्मद यासीन,  कहा जाता है कि अक्टूबर 1957 में वक्फ की संपत्ति शत्रु संपत्ति मानकर नीलम कर दिया गया और नीलम लेने वाले व्यक्ति ने पुन:  वक्फ की जादाद को हबीब उर्फ कल्लू को बिक्री कर दिया। 1957  के बाद गौतम ऋशी  ने 29-12-1969 सेल डीड के जरिये  हबीब उर्फ कल्लू पुत्र अब्दुल अजीज और फुरकान अहमद को बिक्री कर दिया, जमीन की कैफियत मस्जिद, कब्रिस्तान व बागात दर्ज है। मौजूदा वक्फ की  मौके की स्थिति यह है कि पेड़ काट कर प्लाटिंग किया जा रहा है जबकि वाकिफ मिर्जा यासीन के वारिस जमाल इस वक्फ की आराजी नंबर 123 व 4 हैं। वक्फ ट्रिब्यूनल में वादी रजिस्टर्ड 1944 वक्फनामा के बुनियाद पर वक्फ बोर्ड में दर्ज कराने के लिए वाद संख्या 123 /२०२४ बहस जारी है । वादी के वकील एजाज अहमद का कहना है कि वक्फ प्रॉपर्टी है सरकार ने गलत तरीके से शत्रु संपत्ति घोषित कर नीलामी कर दिया जो गैरकानूनी है। नीलामी के बाद बेचकर प्लाटिंग करने की प्रक्रिया को रोकने के लिए ट्रिब्यूनल में पैरवी की जा रही है विरोधी के वकील रिजवान अहमद ने संगीन आरोप लगाते हुए वकील और कस्टोडियन पर पैसा लेने की बात करके मामले को गर्म कर दिया जिससे जज ने नाराज हो कर आज कोर्ट में सूचीबद्ध मुकदमे सुनने से इनकार कर दिया और दूसरी तारीख 22 अक्टूबर 2024 को तय किया है । गौरतलब है कि सरकार पूरे प्रदेश में तमाम बेशकीमती वक्फ की संपत्ति को शत्रु संपत्ति घोषित कर नीलाम करके खुर्द बुरद करने का काम जारी रखा है।

क्या सुन्नी सेंट्रल वकफ बोर्ड के वकील या वादी के वकील या कब्जेदार के वकील कोई शर्मा जी या गुप्ता जी तो नहीं है? अगर यह तमाम लोग मुसलमान कहे जाते हैं तो आने वाले वक्फ संशोधन विधेयक 2024, इन्हीं कमियों से भरा हुआ है तो विरोध क्यों?

क्या वकील मुसलमान नहीं हो सकता अगर वह पहले वकील है बाद में मुसलमान है तो इस बात को पहले समझना होगा कि हक और सच के साथ वक्फ के अमलाक को बचाने के लिए खुद बदलाव की जरूरत है , बाद में सरकार और वक्फ पर कब्जदारों के खिलाफ आवाज उठा सकते हैं। वरना हमारे इस कमियों की वजह से सरकार के शिकंजे मजबूत पढ़ते हुए दिखाई देंगे अगर आज आप मिलकर ऐसे मामलों को निस्तारित नहीं कर सकते हैं तो क्या सरकार या ट्रिब्यूनल आपके फेवर में करने के लिए बाध्यकारी है?

कुछ सवाल कम्युनिटी के रहबरों से क्या 1954 वक्फ एक्ट के बाद ऐसी प्रॉपर्टी जिन पर सरकार या प्राइवेट कब्जेदार  ने अधिकार जमाए हुए हैं। इसका जिम्मेदार कौन ? जहां सुनी सेंटर वक्फ बोर्ड को 1995 वक्फ एक्ट में तमाम शक्तियां देने के बावजूद भी यह काम अधूरा रह गया। क्या वक्फ संशोधन विधेयक 2024 के निरस्त होने के बाद ऐसे मामलों में  कार्रवाई होगी ?  उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वकफ  बोर्ड  1995  से अब तक वक्फ संपत्तियों को हिफाजत के लिए सक्षम न्यायालय में वाद क्यों नहीं दर्ज  कराया ? तो फिर शोर शराबा  क्यों?

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