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सरकार ने वक्फ संपत्तियों को हड़पने के नए तरीकेकार अपनाया

एक तिहाई से ज्यादा वक्फ संपत्तियां गैर कानूनी सूची में।


वक्फ टूडे: लखनऊ

उत्तर प्रदेश वक्फ बोर्डो (सुन्नी व शिया ) की संपत्तियों का इलाहाबाद हाईकोर्ट के लखनऊ बेंच द्वारा यह सर्वे कराया जा रहा है कि कितनी ऐसी संपत्तियों है जो सरकारी भूमि ( बंजार, भीटा, ऊसर एव परती ) पर इंद्राज है।
कुल वक्फ संपत्तियों  वक्फ शिया व सुन्नी लगभग 1,20,000 वक्फ संपत्तियां गजट द्वारा दर्ज है।
गौरतलब है कि पीलीभीत में फुलेरिया गांव से जुड़ा हुआ मामला है । एक मुस्लिम परिवार न 1890 में 423 एकड़ जमीन अल खैर व डिड के जरिए वक्फ किया जो 1952 में राजस्व रिकॉर्ड और वकफ बोर्ड में इंद्राज है। इस प्रकरण में 1952 में यानी 1359 फसली मे खुदकाशत इंद्राज संपत्ति को जमींदारी उन्मूलन एक्ट 1951 के तहत सरकार ने पाकिस्तान से आए गैर मुस्लिम को आवंटन कर दिया गया। यह मामला तब प्रकाश में आया जब 1359 फसली में यह अभी भी खुदकास्त वक्फ है तो उस परिवार ने राजस्व अभिलेखों के आधार पर जिला अधिकारी पीलीभीत के कार्यालय द्वारा पुनः 2011 में वक्फ दर्ज कर लिया जाता है । 2018 में फुलईया गांव के पटेदारो ने बरेली कमिश्नर में चुनौती दिया और राजस्व परिषद इलाहाबाद से बोर्ड के जरिए पुनः वक्फ के टाइटल को निरस्त कर दिया जाता है।और पुन: पटेदारों के हक में फैसला कर दिया गया। उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने वक्फ को धारा 37 से डिलीट कर दिया जो गैरकानूनी है। वादी बिलाल ने अक्टूबर 2023 में इलाहाबाद हाई कोर्ट के लखनऊ बेंच में रिट पिटीशन दाखिल किया और अदालत में सुनवाई के दौरान सरकार व वक्फ बोर्ड द्वारा की गई अन नियमताओं पर कोर्ट की तल्ख टिप्पणियों ने गांव के पटेदारो और सुननी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के वकीलो के कान खड़े कर दिए। कोर्ट ने जब यह पूछा कि 1890 में वक्फ इंद्राज है तो 1951 में यह वक्फ कैसे खत्म हो गया और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने कैसे डिलीट कर दिया जो उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं है । तब अदालत को गुमराह करके ऐसे जानकारी इकट्ठा करने के लिए अनुरोध किया गया जो टाइटल से भिन्न है यानी ऐसी कितनी वक्फ संपत्तियां है जो सरकार ने पटटा अथवा नीलम कर दिया? लेकिन जांच के आदेश इसके विपरीत कर सिर्फ ऐसी संपत्तियों के आंकड़े इकट्ठा किया जा रहे हैं।

वक्फबाई यूजर या शासनादेश 1989 के अनुसार वक्फ में इंदराज संपत्तियों को पुन: राजस्व में दर्ज करने का सरकार का आदेश या कोर्ट द्वारा सर्वे करना या अवैध संपत्तियों की लिस्ट में सूची तैयार किया जाना ये सभी गैर कानूनी है।
जानकार का मानना है कि हाई कोर्ट के आदेश से संपत्तियो का पता करना 1995 एक्ट व 2013 अमेंडमेंट में दिए हुए प्रावधान के खिलाफ बताया। लेकिन कोर्ट के निर्देश पर पीलीभीत की जिला प्रशासन को चार हफ्ते में इस प्रकरण के बारे में बंद लिफाफे में रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश दिया साथ ही साथ पटेदार और ग्राम सभा, वक्फ बोर्ड और सरकारी वकीलों के अनुरोध पर उत्तर प्रदेश के सभी जिलों संपत्तियों की जांच के आदेश आदेश कराया लेकिन पिछले 12vमहीनो सर्वे का काम चल रहा है और जिलधिकारियों से रिपोर्ट मांगी गई है कि कितनी ऐसी संपत्तियों हैं जो सरकारी भूमि पर इंद्राज है ।
उत्तर प्रदेश में सबसे पहले 1944 में वकफ संपत्तियों का सर्वे कर गजट किया था । तब अवध और आगरा प्रान्त हुआ करता था। उसके बाद 1983 में सर्वे और 1984 में संपत्तियों का गजट कराया गया। उस वक्त 110000 वक्फ समितियां सुन्नी वक्फ बोर्ड दर्ज हुई।
जब 1995 एक्ट के तहत सूबे में सर्वे कमिश्नर और वक्फ बोर्ड की कार्यालय फंक्शन में है तो राजस्व विभाग से सर्वे करने का औचित्य नहीं बनता है। यह एक ऐसा प्रकरण है जिसमें 1989 में सरकार द्वारा शासनादेश के क्रम में जो संपत्तियां वक्फ यानी इबादतगाहो में इस्तेमाल में है लेकिन जनरल सर्वे में छूट गई थी उन्हें दर्ज करने का आदेश किया गया था।
इस क्रम में अल्पसंख्यक विभाग के सचिवों द्वारा इस आदेश को लागू करने के लिए अलग अलग तिथियों में 1989, 1996, 2002, 2004, 2006 शासनादेश जारी कर वक्फ संपत्तियों को भू अभिलेख में दर्ज करने की आदेश पारित किए जाते रहे। परंतु 2022 में उत्तर प्रदेश सरकार ने उपरोक्त शासनादेश को निरस्त करते हुए नए फरमान जारी कर दिए। जिसमे
वक्फ संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने के लिए 2022 में पुराने शासनादेश को वापस लिया और नए शासनादेश के जरिए राजस्व विभाग से उन संपत्तियों का रिकॉर्ड 1359 फसली के अनुसार पुन: राजस्व अभिलेखों में दर्ज करने का आदेश दिया।
चेयरमैन, वक्फ वेलफेयर फोरम का इस पूरे घटनाक्रम पर नजर रखे हुए हैं और उनका  कहना है कि सरकार का  इस मामले में जनता में  भ्रम फैलाना  और कानून की खिलाफ वर्जीह करने कोशिश बताया  और

राजस्व विभाग के मैन्युअल, हाई कोर्ट के कई आदेशों में उल्लेख है कि अगर धार्मिक स्थलों के उपयोग पर स्पष्ट आदेश और निर्देश मिलता है कि अगर कोई सार्वजनिक कार्यक्रम स्कूल ,शमशान घाट, कब्रिस्तान या इबादतगाहों का उपयोग में है तो उसे इस प्रयोग से जनहित में वंचित नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि
आज के कई अखबारो की खबरों में उत्तर प्रदेश के एक तिहाई वक्फ संपत्तियां अवैध बताना वक्फ 1995 एक्ट, 2013 अमेंडमेंट एक्ट और राजस्व विभाग के मैनुअल के मुताबिक यह सर्वे गैर कानूनी है और हाई कोर्ट की की अवमाना मानते हैं। क्योंकि जब हाई कोर्ट ने किसी तरह का फैसला पारित नहीं किया तो ऐसी सूचियां के बारे में अखबारों में छपना या प्रचार करना गैरकानूनी है।
यह ऐसा प्रकरण है जिसमें सरकार और वक्क बोर्ड के मिलीभगत से वक्फ अमलाक को नुकसान पहुंचाना चाहती है और उत्तर प्रदेश वक्फ बोर्डो ने सरकार की इस शासनादेश या सर्वे के खिलाफ अभी तक कोर्ट में अपना पक्ष नहीं रखा है। इसकी अगली सुनवाई 17 दिसंबर 2024 को अदालत में सूचीबद्ध है।

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