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इस बार कुर्सी पर कौन है

क्या पितृसत्तात्मक सोच वाली राजनीतिक पार्टी इस बार दिल्ली की कुर्सी पर किसी महिला को बिठाएगी?

बीते दिनों की एक छोटी सी कहानी जो दिल्ली की झलक दिखाती है।

दिल्ली चुनाव के नतीजे आ चुके हैं। इसमें कुछ भी अप्रत्याशित नहीं है। आम आदमी पार्टी के खिलाफ माहौल बन चुका था। आप के बड़े-बड़े नेता भ्रष्टाचार के कई आरोपों में एक-एक करके जेल भेजे जा रहे थे। आप की हार का मुझे उसी दिन यकीन हो गया था। जिस दिन आतिशी को सीएम बनाया गया। दिल्ली का इतिहास रहा है।

जिस पार्टी ने दिल्ली की कमान किसी महिला को सौंपी, वह लंबे समय तक दिल्ली की सत्ता से दूर रही। इसका एक उदाहरण यह है।

बीजेपी ने 1998 में सुषमा स्वराज को 52 दिनों के लिए दिल्ली का सीएम बनाया था, जिसके बाद वह 27 साल के लंबे अंतराल के बाद सत्ता में लौटी थीं।

जब कांग्रेस ने शीला दीक्षित (15 साल) को चुना तो वह 10 साल तक संघर्ष करती रहीं। अब आतिशी को बनाकर आपने सत्ता खो दी है।

अब दिल्ली की जनता ने आम आदमी पार्टी के कुछ नेताओं को आराम करने की सलाह दी है। इसमें पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, सौरभ भारद्वाज, सोमनाथ भारती चुनाव हार गए। मुख्यमंत्री आतिशी चुनाव जीत गई हैं। विपक्ष की नेता की भूमिका निभाएंगी। विपक्ष की भूमिका निभाएंगी। दिल्ली चुनाव में राजनीतिक दलों ने महिला सशक्तिकरण को सर्वोच्च प्राथमिकता पर रखा। क्या भाजपा दिल्ली के मुख्यमंत्री पद पर किसी महिला को बिठा सकती है?

जावेद अहमद संपादक- वक्फ टुडे

 

 

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