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जन्नतुल बकी के पुनर्निर्माण के लिए पीएम मोदी से गुहार, मुसलमानों की भावनाओं का सम्मान हो

वक्फ टुडे लखनऊ, 7 अप्रैल 2025: आज का दिन मुसलमानों के लिए बेहद दुख और गम का दिन है। हर साल 8 शव्वाल को शहीद स्मारक, लखनऊ में एक बड़ा जलसा होता है, जिसमें लोग जन्नतुल बाकी के पुनर्निर्माण की मांग उठाते हैं। इस बार भी मौलाना यासूब अब्बास की अगुवाई में हजारों लोग इस जलसे में शामिल हुए। जन्नतुल बाकी वह पवित्र जगह है, जहां पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम) की बेटी हजरत फातिमा जहरा का मकबरा था। करीब 102 साल पहले सऊदी हुकूमत ने इसे तोड़ दिया था, जिससे दुनिया भर के मुसलमानों के दिलों में आज भी दर्द और गम है।

मौलाना यासूब अब्बास ने जलसे में आए लोगों को बताया कि पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम) अपनी बेटी फातिमा से बहुत मोहब्बत करते थे। वह कहा करते थे, “जिसने मेरी बेटी को तकलीफ दी, उसने मुझे तकलीफ दी।” लेकिन आज उस पवित्र मकबरे को तोड़े हुए सौ साल से ज्यादा बीत गए, और सऊदी हुकूमत इसकी दोबारा तामीर (पुनर्निर्माण) नहीं कर रही। मौलाना ने सऊदी हुकूमत पर सवाल उठाते हुए कहा कि कुछ लोग इसे यहूदियों का साथ देने वाली हुकूमत कहते हैं। उन्होंने कहा कि यह बहुत दुख की बात है कि सऊदी अरब में बड़े-बड़े मॉल, सिनेमा हॉल और शराबखाने बन रहे हैं, लेकिन हजरत फातिमा के मकबरे को बनाने की इजाजत नहीं दी जा रही।

इस जलसे में ओलमा, खुत्बा, जाकिर, मातमी अंजुमन और कौम के बड़े लोगों के साथ-साथ हजारों की तादाद में आम लोग शामिल हुए। सभी ने एक स्वर में जन्नतुल बाकी के पुनर्निर्माण की मांग की। मौलाना यासूब अब्बास ने कहा कि यह सिर्फ एक मकबरे की बात नहीं है, बल्कि यह हर मुसलमान के दिल की आवाज और उसकी भावनाओं का सवाल है। उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील की कि वह इस मामले में दखल दें। मौलाना ने कहा कि भारत सरकार को सऊदी हुकूमत से बात कर दुनिया भर के मुसलमानों की इस पुरानी मांग को पूरा करने में मदद करनी चाहिए।

जलसे के अंत में एक और मार्मिक कदम उठाया गया। लोगों ने अपने खून से एक मांग-पत्र लिखा, जिसमें जन्नतुल बाकी के पुनर्निर्माण की गुहार लगाई गई। यह मांग-पत्र नई दिल्ली में सऊदी दूतावास को भेजा जाएगा। मौलाना ने कहा कि यह खून से लिखा पत्र मुसलमानों के जज्बात और उनकी तकलीफ को बयान करता है।

यह जलसा देखकर हर किसी के मन में यह सवाल उठता है कि आखिर कब तक मुसलमानों की इस मांग को अनसुना किया जाएगा? क्या दुनिया भर के मुसलमानों की भावनाओं का सम्मान नहीं होना चाहिए? अब सबकी नजरें भारत सरकार और पीएम मोदी पर टिकी हैं कि क्या वह इस दर्द को समझकर कोई कदम उठाएंगे।

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