वक्फ एक्ट के खिलाफ कल सुप्रीम कोर्ट के रुख से मुस्लिम संगठन तय कर सकते है दशा और दिशा

वक्फ टुडे
दिल्ली : भारत में नए वक्फ कानून को लेकर मुस्लिम संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. सरकार इसे मुस्लिम हित में बता रही है, जबकि संगठन इसे असंवैधानिक मानते हैं. सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई से कानून के भविष्य का फैसला होगा. विरोध प्रदर्शन और धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन के आरोपों के बीच अदालत का निर्णय अहम होगा वक्फ कानून को लेकर देश की सियासत गरमा गई है. मोदी सरकार और बीजेपी वक्फ कानून को मुस्लिमों के हित में बताने में जुटी है, तो मुस्लिम संगठन विरोध में खड़ा हुआ है। वक्फ एक्ट में बदलाव की बात शुरू होने के साथ ही विरोध हो रहा था और अब कानूनी अमलीजामा पहनाए जाने के बाद विरोध के सुर और भी तेज हो गए हैं. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से लेकर जमियत उलेमाएं हिंद और जमात-ए-इस्लामी जैसे अहम मुस्लिम संगठनों ने सड़क पर उतरकर विरोध करने का ऐलान कर दिया है.
मुस्लिम संगठनों और तमाम विपक्षी दलों ने वक्फ कानून को असंवैधानिक बताते हुए देश की सबसे बड़ी अदालत में चुनौती दी है। सुप्रीम कोर्ट में वक्फ एक्ट के खिलाफ एक दो नहीं बल्कि कई याचिकाएं लगाई गई हैं. मुस्लिम संगठनों को उम्मीद है को सुप्रीम कोर्ट वक्फ कानून को खारिज कर देगा तो सरकार का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट विधायिका के क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करेगा और वक्फ कानून के खिलाफ दायर याचिका रद्द कर देगा।
नए वक्फ कानून पर मुस्लिम संगठन और मोदी सरकार अदालत से उम्मीद लगाए हुए हैं. वक्फ एक्ट के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट बुधवार को सुनवाई करेगा। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के रुख से वक्फ कानून के खिलाफ मुस्लिम संगठनों की लड़ाई की दशा और दिशा तय होगी।जिसके चलते सभी की निगाहें अब सुप्रीम कोर्ट पर लगी है?
अदालत की शरण में मुस्लिम संगठन
वक्फ कानून के खिलाफ मुस्लिम संगठन आरपार के मूड में हैं, लेकिन फिलहाल अदालत पर उनकी उम्मीदें टिकी हुई हैं. जमियत उलेमा ए हिंद से लेकर जमात ए इस्लामी हिंद ने वक्फ कानून के विरोध में सड़क पर उतरने का ऐलान कर दिया है, लेकिन उससे पहले सुप्रीम कोर्ट में लड़ाई लड़ने का ऐलान किया है. मुसलमानों को लग रहा है कि सुप्रीम कोर्ट वक्फ एक्ट को रद्द कर देगा क्योंकि मोदी सरकार ने जो बदलाव किए हैं, वो उनके धार्मिक मामलों में दखलअंदाजी है, जिसे किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं करेंगे. मुस्लिमों के विरोध को देखते तमाम विपक्षी पार्टियों ने भी अदालत में वक्फ कानून को चुनौती दी है.
वहीं, किरेन रिजिजू ने कहा कि उन्हें विश्वास है कि सुप्रीम कोर्ट विधायी मामले में दखल नहीं देगा. हमें एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए. अगर कल को सरकार न्यायपालिका में दखल देगी, तो यह ठीक नहीं होगा. संविधान में न्यायपालिका और विधायिका की शक्तियों का बंटवारा स्पष्ट रूप से परिभाषित है. मैंने किसी भी दूसरे विधेयक को इतनी बारीकी से जांचा हुआ नहीं देखा है।
इस पर एक करोड़ लोगों ने अपनी राय दी और जेपीसी(संयुक्त संसदीय समिति) की सबसे ज्यादा बैठकें हुईं. संसद के दोनों सदनों में इस पर रिकॉर्ड बहस हुई, जिसके बाद पास हुआ है. ऐसे में हमें उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट वक्फ कानून के विरोध में दायर याचिकाओं का रद्द कर देगा.
सुप्रीम कोर्ट क्या-क्या रद्द कर सकता?
दिल्ली हाई कोर्ट के वकील सैय्यद इमरान अली कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट देश की सर्वोच्च अदालत है. सुप्रीम कोर्ट को संविधान का रखवाला माना जाता है. इस तरह से सुप्रीम कोर्ट तय करता है कि देश के संविधान में जो प्रावधान हैं उसका कहीं भी किसी भी हाल में उल्लंघन ना हो. लिहाजा सुप्रीम कोर्ट के पास यह अधिकार है कि वह किसी भी कानून को असंवैधानिक घोषित करके उसे खत्म कर सकता है।
हालांकि, इसके लिए कुछ नियम लागू होते हैं और एक प्रक्रिया होती है. इस प्रक्रिया के तहत ही सुप्रीम कोर्ट किसी कानून को खत्म कर सकता है. मतलब साफ है कि देश की सबसे बड़ी अदालत में वक्फ जैसे एक्ट को रद्द तो किया जा सकता है, लेकिन किन हालात में? ये तभी मुमकिन होता है जब कोई कानून भारत के संविधान के तहत दिए गए मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है. साथ ही अगर कोई कानून संविधान की मूल भावना के खिलाफ होता है, तब भी सुप्रीम कोर्ट उस कानून को खत्म कर सकता है।
मुस्लिम संगठनों को क्यों उम्मीद है ?
इमरान अली कहते हैं कि मुस्लिम संगठनों का मानना है कि वक्फ कानून संविधान के आर्टिकल 25 यानी धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है. ऐसे में आर्टिकल 25 भारतीय नागरिकों को अपनी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार संपत्ति और संस्थानों का प्रबंध करने का अधिकार देता है. ऐसे में अगर वक्फ संपत्तियों का प्रबंध बदलता है या इसमें गैर-मुस्लिमों को शामिल किया जाता है तो यह धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन हो सकता है.
मुस्लिम संगठनों ने साथ ही दलील ये भी दी है कि ये एक्ट संविधान के आर्टिकल 26 का उल्लंघन है.। यह आर्टिकल धार्मिक समुदाय को अपनी धार्मिक संगठनों के रखरखाव यानी मैनेज करने का अधिकार देता है, लेकिन मुस्लिमों का मानना है कि नया वक्फ एक्ट धार्मिक संस्थाओं के मैनेजमेंट का हक छीनता है. संविधान के आर्टिकल 29 और 30 का उल्लंघन यानी अल्पसंख्यक अधिकार की सुरक्षा छीनता है. ऐसे में मुस्लिम संगठनों को लग रहा है कि सुप्रीम कोर्ट आर्टिकल 25 और 26 के आधार पर वक्फ कानून को रद्द कर सकता है।
संविधान के आर्टिकल 13 (2) के अनुसार ऐसे कानून जो पार्लियामेंट द्वारा निर्मित वक्फ कानून को रद्द कर सकता है जो नगरिक के अधिकारों का हनन करता है।
वक्फ कानून का विरोध कर रहे मुस्लिम संगठनों का दावा है कि यह एक्ट अल्पसंख्यकों को कमजोर कर सकता है और उनकी वक्फ संपत्तियों को सरकारी कंट्रोल में ले सकता है. सुप्रीम कोर्ट में अगर ये साबित हो जाता है कि ये एक्ट मुस्लिमों की धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है और गैर मुस्लिमों की बोर्ड में एंट्री होने से उनका अधिकार छिन जाएगा तो शायद मोदी सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती है.
मोदी सरकार ये बताने में जुटी है कि वक्फ कानून में बदलाव इसीलिए भी किया गया है कि वक्फ संपत्तियों में भ्रष्टाचार हो रहा था. वक्फ संपत्तियों का सभी इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है. वक्फ संपत्तियों में पारदर्शिता लाने के लिए बदलाव किया गया है और ये मुस्लिमों के हित में लिया गया कदम है. इससे किसी की भी धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं हो रहा है और न ही किसी की धार्मिक हक को छीनता है. इस आधार पर मोदी सरकार को लगता है कि सुप्रीम कोर्ट वक्फ कानून को लेकर दायर याचिका को रद्द कर देगा.
सुप्रीम कोर्ट के रुख से तय होगी दशा-दिशा
वक्फ वेलफेयर फोरम के चेयरमैन जावेद अहमद कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट बुधवार को वक्फ कानून पर सुनवाई करते हुए वक्फ एक्ट के खिलाफ दायर याचिकाओं को रद्द कर देता है तो फिर मुस्लिम संगठनों के पास कोई भी रास्ता नहीं बचेगा. सुप्रीम कोर्ट ही आखिरी रास्ता है. अदालत, अगर वक्फ कानून को लेकर कोई सख्त टिप्पणी करती है और कहती है कि मुस्लिमों को धार्मिक मामले में हस्तक्षेप करना सही नहीं है तो मुस्लिम संगठनों को सियासी बुस्टर मिल जाएगा. मुस्लिम संगठन पूरी मजबूती के साथ वक्फ एक्ट के खिलाफ आंदोलन कर सकते हैं. इसके अलावा कोर्ट के सामने मुस्लिम संगठनों को वक्फ एक्ट के खिलाफ रखने के लिए मजबूत आधार है, जिसके चलते ही मुस्लिमों को अदालत से उम्मीद है.
सुप्रीम कोर्ट में ये बात साबित हो जाती है कि वक्फ कानून में किसी भी तरह से संविधान की मूल भावना को तोड़ा गया है, तो हो सकता है सुप्रीम कोर्ट में कानून रद्द हो जाए, लेकिन अगर मुस्लिम संगठन साबित नहीं कर पाते हैं तो फिर सरकार का पलड़ा भारी नजर आएगा. जिस तरह से तीन तलाक में मोदी सरकार ये साबित करने में सफल रही है कि तीन तलाक का ताल्लुक इस्लाम के मूल सिद्धांतों में से नहीं है. इसी तरह से वक्फ एक्ट को लेकर उसकी तैयारी है. ऐसे में मुस्लिम संगठनों को देखना है कि कैसे अपनी बातों को अदालत में रखते हैं?